सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

गांव छोड़ने को मन नहीं है

 

(गांव छोड़ने को मन नहीं हैं)। सीर्षक
हम भारत के लोग बड़े   दिल से बड़े ही मुलायम होते हैं दयालु प्रकार के होते हैं इसी भारत में रह रहे गांव के लोग बड़े ही भोले से सक्कल वा अक्कल से भी हरादयप्रेमी दिखते हैं  प्यार से बोलने पर इतनी गहरी दोस्ती बना लेते हैं इसका  उदाहरण सोले मूवी है जिसमें ग्रामीण परिवेश दिखाया गया है भारत के किसी भी कोने में जाकर देख लो हर इंसान प्यार से नहीं सम्मान से बात करता है सहरों में नहीं गांव के एक लड़के को सेहर  जाकर पढ़ाई या काम कुछ भी करने को है मन क्यों नहीं गांव छोड़ने को कहता है ह्रदय क्यों साफ माना करता है तब उस वक्त हमें गांव की वो ही गालियां ह्रदय को झिकरती हैं उस वक्त पता नहीं दिल से वो सभी यादें निकलती क्यों नहीं कुछ पता नहीं क्या यही प्यार है या फिर क्या है एक पल में सभी मौसम का द्रस्य हमारे दिल में उभर आता है वो लहलहाते सरसों के पीले हरे से खेत चारों ओर हरे हरे गेहूं के खेत गर्मियों में धान लगाने के दिन साथ में सभी दोस्तों के साथ की यादें हमारेंदिल को अंदर से आंसुओं की तरह जोर से निकलती हैं पर कोई बता नहीं पाता ओर क्यों नहीं जाने को केहता में बरसो बाहर कहीं दूर गांव छोड़ने को  अगर पहुंच भी गए तो दिल का ओर मन का हाल जैसे हर जगह सब बिखरा पड़ा है ऐसा मन लगने लगता है क्यों क्या यही हैं प्यार ये गांव से प्यार है या फिर पर कोई ईश्वरसर्वशक्ति भारतिया। गांव हरियाली से इतने ढके रहते हैं कि मन सदैव हरा भरा लगता है। खास कर इनके रीति रिवाज 

 Writer । Punit raj। 

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